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Tuesday, October 11, 2011

पोखरा (नेपाल) की रोमांचक यात्रा

हिंदी मुहावरों में रूचि रखने वालों ने ये कहावत तो जरूर सुनी होगी की मेढ़कों को कभी भी तराजू पे नहीं तौला जा सकता , मगर मेरे मित्र मण्डली की अगर बात करें तो ये कहावत थोड़ी बदलनी पड़ेगी और इसे यूं लिखना पड़ेगा-  "मेढ़कों को तो आप तराजू पे तौल भी सकतें हैं पर अभिजीत और उसके दोस्तों को कभी नहीं !" यही कारण है की बर्षों की गाढ़ी दोस्ती के बाबजूद और आजतक की हजारों प्लानिंग के बाबजूद हम सब इकट्ठे कहीं घुमने नहीं जा सके हैं ! 
यात्रा वृतान्त सुनाना शुरु करूँ इससे पहले जरूरी है की अपने इन दोस्तों का संक्षिप्त परिचय आपको दे दूं ! यात्रा शुरू होने से पहले से लेकर वापस आने तक के दरमियाँ हुए नौटंकी के इन प्रमुख पात्रों के बारे में जाने बिना इस यात्रा वृतांत का वर्णन अधुरा रहेगा ! हाँ इस परिचयमाला में न तो मैं किसी का नाम उल्लखित कर रहा हूँ (क्योंकि इसके बाद झगड़ा होने की पूरी-2 संभावना है) और न ही खुद के बारे में कुछ लिख रहा हूँ, आप अपनी प्रतिक्रियाओं में इस बाबत बता दें ! 
प्रमुख पात्र हैं-
       (1) इस के बारे में मशहूर है की है की ब्रह्मा जी ने बुद्धि बनाने से पहले इसे बना दिया था, बेसिर-पैर की आधारहीन बातें करने इसका प्रिय शगल है ! नवजोत सिद्धू के शब्दों में कहें तो बिलकुल उसी चीनी मुर्गी की तरह जो सालों तक किसी अंडे पे बैठी रहे फिर भी कोई परिणाम न निकले ! लेकिन इसकी एक बहोत अच्छी आदत भी है, अगर एक बार कमिटमेंट कर लिया फिर चाहे जो भी हो जाये उसे पूरा किये बिना पीछे नहीं लौटता ! मेरे मित्र मंडली का दूसरा लड़का जो आपको किसी प्लानिंग में धोखा नहीं दे सकता , चाहे जो हो जाये ! इसमें गर्वोक्त घोषनाएं करने की भी बीमारी है, जो कभी भी इससे पूरा नहीं हो सकता !
       (2) ये वही दूसरा लड़का है जिसकी चर्चा  ऊपर की गयी है , मतलब किसी प्लानिंग में ये भी आपको धोखा नहीं देगा ! पर इसकी सबसे बड़ी बीमारी है इसको तुरंत आने वाला गुस्सा,  जिसकी जद में जो आ गया उसकी फिर खैर नहीं ! ये चाहता है की हर काम इसके मन मुताबिक ही हो, वरना जोर-जोर से चिल्लाना शुरू !
       (3) अति सर्वत्र वर्जयेत का जीता-जागता उदाहरण ! इसके साथ समस्या ये है की इसमें बुद्धि कुछ ज्यादा ही है, और ये मजाक की बात नहीं है, वास्तव में इसमें बुद्धि ज्यादा है ,इसलिए ये कभी-२ अनियंत्रित हो जाता है, जिसके बाद इसे सिर्फ एक लड़का नियंत्रण में ला पाता है ! इसके बारे में हम दोस्तों में मांग उठती है की इसे पागल घोषित कर दिया जाये !  टांग खींचने के लिए अगर नोबल prize मिलना शुरू हो तो शायद इसे ही मिलेगा !  मेरे साथ ठहाका लगाने में इसकी खूब जमती है !
      (4) "सिद्धांतवाद का इंसानी अवतरण", इसके लिए इससे बेहतर नाम और कुछ नहीं हो सकता क्योंकि इसे अपने बारे में ये भ्रम है की ये अपने सिद्धांत से नहीं डिगता ! इसकी समस्या है की एक बार इसके मुंह से जो निकल गया उसे ये पत्थर की लकीर बना देता है (ये और बात है की हमलोगों की चालाकी ऐसा होने नहीं देती)
     (5) इसके बारे में कहावत है की अगर ये लड़की होता तो हम लोग इसी से शादी करते, वो इसलिए क्योंकि इसमें लड़कियों की तरह रूठने के सरे गुण हैं ! ये वही लड़का है जिसका तीसरा वर्णित लड़का सबसे ज्यादा टांग खींचता है ! इसी किसी जगह जाने के लिए तैयार करना सबसे कठिन कार्य है , जब तक ये गाड़ी में बैठ नहीं जाये और हम इसे पकड़ न ले तब तक यही माना जाता है की ये नहीं जाने वाला ! अगर किसी ट्रिप में ये साथ है फिर उससे मजेदार ट्रिप कोई हो ही नहीं सकता ! 


यात्रा की पृष्ठभूमि-
                         आज हम सभी दोस्त सरकारी नौकरी में अच्छे पदों पर हैं, एक दोस्त इंजिनियर है , इसलिए सबसे पहली समस्या हो रही थी सही टाइम setup की, क्योंकि एक साथ एक वक़्त में सभी को छुट्टी मिल जाये ऐसा संयोग कभी ठीक से बन नहीं पाया था और अगर कभी बनने की गुंजाईश भी दिखी तो इन सब दोस्तों के विचित्र व्यवहार ने इसे होने नहीं दिया !
इस बार शायद माँ दुर्गे की कृपा से ये शुभ संयोग बन गया की नवरात्री में हम सभी दोस्त छुट्टी के साथ मुजफ्फरपुर में मौजूद थे ! वैसे झगड़ा होना तो शुरू हो गया था सितम्बर से ही ! इस बात को लेकर की कब जाना है? कहाँ जाना है ? कैसे जाना है? कितने दिनों के लिए जाना है? और ये झगड़ा चलता रहा जाने-जाने तक !
न जाने के बहाने क्या-२ थे ये भी देख लीजिये -
तुम जाओ हम नहीं जायेंगे !
हमको  ये काम है, हमको वो काम है!
घर  में सब मना कर रहा है !
अगले साल का plan बनाओ !
एक ने तो ये भी कहा शादी हो जाने दो फिर चलते हैं , अपनी-२ बीबी के साथ !
                       खैर 4  अक्टूबर की रात को L.S कॉलेज में हुए भयानक आरोप-प्रत्यारोप, झगड़ा के बाद decide  हुआ की  6 तारीख यानि विजयादशमी के दिन पोखरा और काठमांडू, नेपाल की यात्रा पे निकलना है ! अब लगभग सबकुछ Decided था की जाना था, हमलोग ATM से पैसे निकाल चुके थे, गाड़ी book किया जा चुका था, blog पे यात्रा वृतान्त लिखने के अहसास से मैं रोमांचित हुआ जा रहा था की 5 तारीख की शाम को एक नया नाटक शुरू हो गया , एक दोस्त ने कहा की सात तारीख को हर हाल में मेरा पटना पहुंचना जरूरी है , चाहे जो हो जाये इसलिए हम नहीं जायेंगे ! दुसरे ने कहा ,मुझे घर से गुंजाइश नहीं है ! हम लोगों का mood off हो गया! शाम को हमलोग फिर जुटे और फिर झगड़ा शुरू ! किसी निष्कर्ष पे पहुँचने के लिए मारपीट छोड़ के सब कुछ हुआ ! इसी लिए मेरी मित्र मंडली का एक नाम "कचरा बिग्रेड" भी है, क्योंकि बिना कचरा हुए आज तक कोई निर्णय हुआ ही नहीं ! फिर इन दोनों बहानेबाजों के कई शर्तों के साथ रात के 10:30  में  decide हुआ की कल सुबह अब जाना ही है !
घर में सब पूछते थे, क्या हुआ तुमलोगों के प्रोग्राम का  जाना है की नहीं? , पर इतने के बाबजूद भी हम में से कोई यह कह पाने की स्तिथि में नहीं था की हाँ हम जा रहें हैं , क्योंकि सबको यह डर था की क्या पता अगले मिनट किसका decision बदल जाये !


दिन-६ अक्टूबर समय- सुबह ८ बजे 


कहते हैं की जब कुछ ख़राब होना हो तो एक साथ होता है, ये सुबह भी ऐसी ही थी !
हम लोग सब नहा-धोकर, कपडे पहन कर बैठे थे की बस अब निकलना ही है, तभी एक मनहूस फ़ोन आ गया की जो गाड़ी हमने ठीक की है उसका ड्राईवर आया ही नहीं ,कोई दूसरा ड्राईवर देखा जा रहा है! 10 बजे पता चलता है की उस दूसरे ड्राईवर ने भी आने से इनकार कर दिया है !
अब दूसरे गाड़ी की खोज शुरू हुई, हर आधे-२ घंटे पर उम्मीद जगती थी की शायद अब कोई फ़ोन आ जाये की गाड़ी ठीक हो गया , घर से निकल ! पर उम्मीद बेमानी, हर तरफ से यही सुनने को आता था की अब जाने की कोई उम्मीद नहीं है ! २ बज चुके थे , गाड़ी खोजने निकले मेरे तमाम मित्र वापस अपने घर में आकर निराश हो कर सो चुके थे, तभी एक उम्मीद भरी खबर मिली की एक ड्राईवर जाने को तैयार है पर वो सिर्फ नेपाल बोर्डर  तक जायेगा उसके आगे नहीं !  हमने सोचा डूबता को तिनके का सहारा, चलो कम से कम घर से निकले तो सही, आनन-फानन में एक दूसरे को फ़ोन किये और बोला गाड़ी मिल गयी है आ जाओ, पर ये नहीं बताया  की गाड़ी सिर्फ रक्सौल तक ही जाएगी, नहीं तो फिर उनमे से दो को न जाने का कोई न कोई बहाना मिल जाता ! एक बार गाड़ी में सभी दोस्त बैठ गए फिर मस्तियों का दौर शुरू हो गया ! हमलोग शाम ६ बजे रक्सौल पहुँच गए , वहां से भारत-नेपाल बोर्डर पहुंचे तो 8 बज चुके थे ! फिर भयानक झगड़ा शुरू हो गया , कुछ थे जो ये कह रहे थे की आज रात को ही पोखरा के लिए निकलते हैं, रात को निकलेंगे तो सुबह-2 पोखरा पहुँच जायेंगे और घुमने के लिए भी काफी समय मिल जायेगा तो कुछ इस बात पे अड़ गए की चाहे जो जाये आज रात को यहाँ से नहीं निकलना है क्योंकि रास्ते  में लूट-पाट की बहुत घटनाएँ  होती है ! मेरा मूड उखड़ गया, क्योंकि मौत सिर्फ ईश्वर के हाथ में है, जब तक वो नहीं चाहे कोई आपका कुछ बिगड़ नहीं  सकता और इस डर से की रास्ते  में कुछ बुरा हो कोई न जाये ये नाकाबिले बर्दाश्त बात थी, खैर बात उन्ही लोगों की चली जो न जाने के पक्षधर थे , मतलब 6  तारिख का रात हमें वीरगंज में ही गुजारने थे ! रात में subhash  ने ठान ली की किसी को भी सोना नहीं है, हम सब जग के रात भर गप करेंगे और अगर कोई सोया तो बाकी सब उसे नंगा कर उसका विडियो बना देंगे ! ये ऐसी शर्त थी जिसके बाद किसी में सोने की हिम्मत नहीं बची ! सारी रात हमने जाग कर बिताई , होटल वाले ने बताया की कल सुबह 4 :30  में  आप लोगों को पोखरा के लिए गाड़ी मिलेगी ! सब कुछ तै था की फिर अगले दिन सुबह तीन बजे झगड़ा शुरू हो गया की कहाँ जाना है ? कुछ कह रहे थे की पहले पोखरा चलो तो कुछ की काठमांडू ! एक बार तो ये लगा की कहीं यहाँ आकर ऐसा न हो की प्लान चौपट हो जाये , हम झगरते ही रह जाये और पता चले की कहीं भी जा नहीं पाए !
हमें गाड़ी वाले ने बताया की वीरगंज से पोखरा जाने में ज्यादा से ज्यादा 5  घंटे लगेंगे क्योंकि दूरी ज्यादा नहीं है, 285  किलो मीटर है ! पर हम वहां पहुंचे शाम को 4  बजे  मतलब हमें लगे पूरे 10  घंटे! मतलब ये की चंद मित्रों के जिद के कारण एक पूरा बहुमूल्य दिन ख़राब ! अगर हम कल रात को ही चल दिए होते तो हमें पोखरा घुमने को 8  तारीख का पूरा दिन मिल जाता और उसी दिन रात को हम काठमांडू के लिए गाड़ी पकड़ लेते पर अफ़सोस ! अब हमें अपनी प्लानिंग फिर से बदलनी पड़ रही थी ! जैसे-तैसे झगड़ा थमा और पोखरा जाने पर सब सहमत हुए ! गाड़ी वाले ने भी हमें खूब गधा बनाया उसने कहा की ४:३० में गाड़ी खुल जायेगा पर गाड़ी खुली 6 :30  में !
वीरगंज से पोखरा जाने के दौरान एक मजेदार वाक्या पेश आया , रास्ते में नाश्ते के लिए जब बस रोका गया तो वहां एक फल की दूकान थी, जिसमे बेचने वाली एक काफी खुबसूरत पहाड़ी लड़की ! आलम ये हो गया की हमारे दो दोस्त उस दुकान से हटने को तैयार ही नहीं, बस वाला होर्न बजाये  जा रहा है और ये की उसके साथ लगे हुए हैं ! हार कर बस वाले ने कहा अपने दोस्तों को बुला नहीं तो  मैं गाड़ी बढ़ाता हूँ !
उसके बाद हमने जबरदस्ती इन्हें वापस गाड़ी में लाया !
जैसा की बता चूका हूँ , पोखरा पहुंचकर शाम हो चुकी थी !
अब हम पोखरा  में थे ! यह नेपाल का दूसरा बडा शहर है जो नेपाल  के पश्चिमांचल विकास क्षेत्र में अवस्थित एक नगर है। यह नगर गण्डकी अञ्चल का कास्की जिला के पोखरा घाटी में स्थित है। पर्यटन केन्द्र होने के साथ साथ पोखरा पश्चिमांचल विकास क्षेत्र का शिक्षा, स्वास्थ्य व वाणिज्य केन्द्र भी है । पोखरा विश्वविद्यालय यहीं अवस्थित है। पश्चिम नेपाल का सबसे प्रसिद्ध Campus पृथ्वीनारायण यहीं अवस्थित है। पश्चिमांचल इन्जीनीयरिंग Campus, मणिपाल मेडिकल कॉलेज, जनप्रिय Campus, नर्सिंग Campus, गण्डकी बोर्डिंग स्कूल आदि यहाँ के प्रमुख शिक्षण संस्थान  है। पस्चीमान्चल क्षेत्रीय अस्पताल के साथ साथ मणीपाल मेडीकल College ,शिक्षण अस्पताल कुष्ठ रोग अस्पताल भी  पोखरा मे मौजुद है ।
राजधानी काठमाण्डौ  से पोखरा को पृथ्वी राजमार्ग जोडता है। भैरहवा के भारतीय सीमा से पोखरा को बुटवल होते हुए सिदार्थ राजमार्ग जोडता है। पोखरा-बाग्लुंग-बेनी सडक पोखरा को उत्तर पश्चिम के भूभाग (मुक्तिनाथ, मुस्तांग) से जोडता है। आने जाने का सबसे बढ़िया साधन taxi सर्वत्र व आसानी से उपलब्ध है  पोखरा में एक आन्तरिक विमानस्थल है। इस विमानस्थल को क्षेत्रीय स्तर का अन्तराष्ट्रीय विमानस्थल बनाने का प्रयास हो रहा है। अभी यह विमानस्थल से काठमाण्डौ, भरतपुर व जोमसोम तक का उडान उपलब्ध है। पोखरा से दिल्ली तक की डाइरेक्ट बस सेवा भी उपलब्ध है। यहाँ का मुख्य उदयोग पर्यटन ही है, विदेशी सैलानियों का ताँता लगा रहता है ! यहाँ आकर एक और प्रमुख बात देखने को मिली ! यहाँ का समाज महिला प्रधान है, ज्यादातर दुकाने यहाँ की महिलाएं  और लड़कियां ही चलातीं हैं और पुरुष नौकरी आदि दूसरा काम करते हैं ! यहाँ की लड़कियां काफी खुबसूरत होती हैं , यही कारण है की हमलोगों ने न चाहते हुए भी उनके दुकानों में खरीदारियां की ताकि उन्हें देखने का मौका मिले ! पर्यटन केंद्र होने के कारण महंगाई बहुत ज्यादा  है ! यहाँ का समाज और लड़कियां बहोत खुले विचारों की है, ईसाई प्रचारकों और विदेशी प्रभाव के  कारण आपको खुलेआम सड़क पर प्रेम-प्रसंग में लिप्त जोड़े दिख जायेंगे !
खैर हमने जल्दी-२ एक होटल लिए और Decide किया की आधे घंटे में फ्रेश होकर घुमने निकल जायेंगे !

आप यकीन नहीं करेंगे की होटल के कमरे में उस वक़्त जो हम में झगड़ा शुरू हुआ वो रात के आठ बजे तक चलता रहा मतलब हम कहीं भी घुमने नहीं जा सके ! मतलब ये की वो पूरा दिन सिर्फ यात्रा और झगड़ने में खत्म ! रात में खाना खाने के बाद हम सबने एक दुसरे से वादा किया की कल कोई झगड़ा नहीं होगा और हम  सुबह 4  बजे उठ कर छत पे जाकर हिमालय की धौलागिरी और अन्नपूर्णा की चोटियों को देखेंगे ! (ये एक सुखद बात थी की हमारा होटल जहाँ था उसके छत से हिमालय की हसीन बर्फीली चोटियाँ नज़र आती थी) !
रात को दो बजे सोने के बाद यह उम्मीद की वो ४ बजे उठ जायेंगे (वो भी तब जब की पिछले रात को भी न सोया हो ) हम जैसे बेबकूफ बिग्रेड ही कर सकते थे ! सुबह हम सबकी नींद खुली 5:30 में ! दौड़ते-भागते हम छत पे पहुंचे ! सामने था २०० किलोमीटर दूरी पर नगाधिराज हिमालय की हसीन बर्फाच्छादित अन्नपुर्णा और  धौलागिरी की खुबसूरत चोटियाँ , वो चोटियाँ जिसे आजतक सिर्फ T.V पे और किताबों में देखते आये थे , वो चोटियाँ जो हमारे महान हिमवान पर्वत की है ! जो न जाने कितने लाख साल से भारत माता का मस्तक सजा रहा है ! इसे देखकर जो अनुभूति हुई उसका वर्णन नहीं कर पा रहा हूँ ! क्या हम उसी हिमालय को देख रहे थे जो कैलाशपति शिव का निवास स्थल है, जो माता पार्वती के पिता हैं, जहाँ पवित्र अमरनाथ गुफा है, जहाँ का एवरेस्ट शिखर दुनिया भर के सैलानियों और पर्वतारोहियोंको आकर्षित    करता है है, जो गंगा आदि अनेक पवित्र नदियों की उद्गम स्थली है, जिससे होके पांचो पांडवों ने स्वर्ग की यात्रा की थी , जहाँ न जाने कितना ऋषि-मुनि तपस्यारत है ! हिमालय की इन चोटियों से टकराती भगवान सूर्य की किरणे जो दृश्य उत्पन्न कर रही थी, अद्भुत था !

                                                                                                                                                                   
    "पर्वतराज हिमालय की चोटियाँ"

इसके बाद शुरू हुआ तस्वीरों का दौर -

"होटल के छत पे अभिषेक के साथ"

"सुभाष  मैं और अभिषेक "

"हम सब दोस्त एक साथ"

पोखरा में होटल के बाहर


"झील के बाहर"

हिमालय दर्शन के बाद हम घुमने निकले ! सबसे पहले डेविस फाल देखने गए ! यहाँ पानी 500  मीटर की ऊंचाई से गिरता  है , june से septermber   यहाँ आने के लिए सबसे उपयुक्त समय  है ! यहाँ ऊंचाई से गिरता  पानी, और नीचे सैकड़ों फूट गहरा खाई भयानक दृश्य उत्पन्न कर रहा था , यहाँ भी हमने खूब फोटोबाजी की !  





"डेविस फाल का एक दृश्य"


"डेविस फाल के अहाते में अभिषेक, चंदन और मैं "
मनोकामना देवी वाला मजेदार घटना भी इसी के अहाते में घटित हुयी जिसका वर्णन नीचे है ! इसे डेविस फाल के अहाते में भगवान बुद्ध का एक बड़ा सुन्दर मंदिर भी था ! 
यहाँ से निकल कर ठीक सामने एक गुफा में जिसकी लम्बाई 29  किलो मीटर है में गुप्तेश्वर महादेव का मंदिर था, ये धरती  के काफी नीचे अवस्थित है ,जहाँ  वात्सयानन ऋषि ने तपस्या की थी !  इसी गुफा के अन्दर कामधेनु गाए की एक प्रतिमा भी है जिनके बारे में यह मान्यता है की उनके दर्शन से मनचाही मुराद पूरी होती है ! वहां से निकल कर हम एक ऐसे गुफा में गए जो चमगादर  के लिए प्रसिद्ध था ! यहाँ गुफा के अन्दर काफी अँधेरा रहता है इसलिए हमें टॉर्च लेके जाना पड़ा ! अन्दर अचानक  इतनी भीड़  हो गयी और Oxygen की इतनी कमी हो गयी की साँस लेना मुश्किल हो गया ! निकलने का एक ही रास्ता था जो काफी संकरा था, हमें वापस उसी रस्ते से बाहर निकलना पड़ा जिस रास्ते से हम अंदर गए थे ! गुफा के छत पे हजारों चमगादर थे ! शायद उन्ही के नाम पे इस गुफा का नाम चमेर गुफा रखा गया है !
"गुफा के छत पे दिख रहे चमगादर" 

इसके बाद हम महेंद्र गुफा गये, वहां भी गुफा के अन्दर भगवान् भोले नाथ का दर्शन किया ! 11:30  बज चुके थे, इसलिए सोचा की एक बार फिर होटल जाकर आगे की प्लानिंग की जाये !

"गुफा की छत से टपकता पानी"
"गुफा के गेट पे मैं, चंदन और अभिषेक"
                   
होटल में आकर खाना खाया , प्लानिंग के लिए बैठे की फिर से झगड़ा शुरू ! तीन लोग इस बात पे अड़ गये की काठमांडू चलना है और तीन इस बात पे की काठमांडू नहीं जाना है ! खैर  २ बजे जाकर ये फैसला हुआ की काठमांडू नहीं जाना है ! 
होटल से बाहर आ कर एक तिब्बती दुकान से ब्रेसलेट, purse और कुछ चीजें खरीदने के बाद पोखरा के उस जगह पर पहुंचे जहाँ जाकर लगा की हमारा पैसा वसूल हुआ ! 
करीब 500  सीढियों से नीचे उतरने के बाद एक जलप्रपात से गिरता पानी और उसमे नहाने और मस्ती करने का आनंद मिला ! पानी की धार इतनी तेज़ थी की एक बार तो मैं बहता -बहता बचा ! जिस पत्थर पे पैर रख के खड़ा था वो पत्थर पानी की धार में बह गया और मैं भी उसी के साथ, वो तो शुक्र था की दोस्तों ने बचा लिया वरना काठमांडू के उन पांच बदनसीबों  की लिस्ट में मेरा नाम  भी शामिल हो जाता जो ६ महीने पहले डूब के इसी जलप्रपात में मर गये थे ! पूरे यात्रा का सबसे बेहतरीन  वक़्त यही था ! 

"इसी दृश्य के लिए तो पोखरा गया था"

"इन सीढियों पर चढ़ना ओफ्फ्फ्फफ्फ्फ्फ़ "

"पॉवर हाउस का एक द्रश्य"

                                            
"पानी में मस्ती"

"ग्रुप फोटो का मज़ा"

"Power House में मैं"


यहाँ नहाने के बाद ऊपर चढ़ने में हालत ख़राब हो गया , पूरे 15 मिनट लगे हमें सीढियों से ऊपर पहुँचने में ! काठमांडू तो जाना था नहीं , सो खाना खाकर  फिर से गाड़ी से वापस बीरगंज और फिर अपने घर मुजफ्फरपुर !

"आराम के क्षण"
                             

"पॉवर हाउस के अहाते में "
"दिलकश नज़ारा"          
                                                                                                                                                                                                     

          नहाने के बाद एक फोटो हो जाये"
                           
"दिलकश नज़ारा"


यात्रा के दौरान के कुछ unique  कथन जो हमारे बीच SMS हो रहा है  - 
1. इज्जत ले करके बेइज्जत कर देले !
२. एक बात आज साबित हो गेलु जब तक सेक्स के फ्री न करबे देश तरक्की न करतु (अर्थशात्री मित्र का सुझाव)


यात्रा के उत्तर परिणाम-

सबने यह कसम खाया की इस कचरा circle  के साथ अंतिम trip है, जितना नौटंकी हुआ उसके बाद फिर  साथ-२ घुमने की कोई उम्मीद नहीं बचती ! सबने एक दुसरे को कोसा, आरोप-प्रत्यारोप लगाये ! पर मैं जनता हूँ हज़ार झगड़ो के  बाबजूद ये तमाम कमीने (मैं भी ) अगले महीने फिर जुटेंगे किसी नयी यात्रा के लिए , क्योंकि इस पहले रोमांचक यात्रा की खुमारी तमाम दिक्कतों और शिकायतों के बाबजूद उन्हें ऐसा करने को मजबूर करेगी 
बची हुई तस्वीर जल्द ही डालूँगा, आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतज़ार !!!!!
                                                 
यात्रा की कुछ मजेदार घटनाएँ 

डेविस fall के पास ही मनोकामना देवी की एक प्रतिमा है पानी के अन्दर ! इसके बारे में मान्यता है की अगर इसमें सिक्के डालो और वो देवी की छोटी प्रतिमा पे जाके ठहर जाये तो आपकी मनोकामना पूरी हो जाएगी ! हम सबने try  किया और अपने-२ किस्मत आजमाए ! सिर्फ एक को छोड़ कर बाकी सबके सिक्के मूर्ति पे जा टिके ! उस बेचारेने 6 बार try किया , यहाँ तक की जब उस बेचारे के सिक्के ख़तम हो गए तो वो बाहर जाकर और सिक्के exchange कर ले आया , पर परिणाम वही रहा, सारे सिक्के मूर्ति से काफी दूर गिरते थे, मज़े की बात तो ये थी की ये लड़का physics  का student  रहा है, अब इसे उसका बाद luck या जो भी कहिये जब भी वो सिक्का डालना शुरू करे हम सब एक साथ बोलना शुरू कर देते थे, "हे भगवान इसका सिक्का मूर्ति पर न गिरे" और हुआ भी वही, बेचारा बुरी तरह झल्ला गया था और झल्लाहट में निराश होकर खुद को सांत्वना देते हुए  कहा- "जेकर सिक्का मूर्ति पर न गिरैसी उ की जिन्दा न हई" (यानि , जिसका सिक्का मूर्ति पर नहीं गिरता क्या वो जिन्दा नहीं है?) ! उसको रोनी सूरत देख के हम सबके हँसते-२ बुरा हाल था !  ये घटना भी सबसे यादगार घटनाओं में एक है !

यही मूर्ति है जहाँ  उसका सिक्का हमेशा नीचे गया"



                                      कुछ यादगार तस्वीरें 

"ये दोनों क्या कर रहे हैं ?"

"सुभाष ने बॉस को फिर से गुस्सा दिला दिया"

"मस्ती के क्षण"
"ये किसे देख रहा है ???"

"एक गुफा में हमलोग फंस गए थे, घबराये हुए अपने बॉस" 
"ये सीन सेंसर हो सकता है"

"ये कपडा पहन रहा है या खोल रहा है"
"लीजिये अब ये भी रूठ गया"
"रोमांस के लिए सबसे मुफीद जगह है पोखरा"
                                                                                                                  
            ABHIJEET

photo अगले part में -

4 comments:

  1. nice documentary!!! less funny this time

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  2. great!!! achi masti hui yatra ke dauran!!!interesting blog!!good to see photographs !


    vishnu

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  3. isshhhhhhh!!! kitna enviable trip tha....mujhe toh padh k hi maza aa gaya as if i was also dere....nice photographs....

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  4. Very nice and funny moment dear. Jindagi Eak ADHURI YATRA hai. - Rk Birahi.

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