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Tuesday, November 13, 2012

कुछ बेहतरीन गज़लें


सर अपना काट के फेंक  आया कूयें-कातिल में
ये बोझ था   मेरी गर्दन     पे सो   उतार   आया
जवान    मारिका-ए-हुस्नों    इश्क था   आजाद
चला   जो   दिल पे न काबू तो जान हार  आया।  
                                                  मौलाना मुहम्मद हुसैन

अदा में,  सादगी  में   कंघी   चोटी ने खलल डाला
शिकन माथे पे, अबरु में गिरह, गेसू में बल डाला
खिले दो फूल नीलोफर के आंखें उसने जब  खोलीं
सितम कैसा किया, शर्माय हाथों से जो मल डाला।    
                                                           सैयद अली हैदर

वो आलम है कि मुंह फेरे हुये आलम निकलता है
शबे-फुर्कत में गम झेले हुओं का दम निकलता है
इलाही खैर हो उलझन पे उलझन  बढ़ती जाती  है
न मेरा दम, न उनके गेसुओं का खम निकलता है
कयामत ही न हो जाये जाए पर्दे से निकल  आओ
तुम्हारे मुंह छुपाने में तो ये  आलम निकलता  है।      
                                                            सैयद अली नकी

हमदमों ने जान   ले   ली पुसिर्ये-आजार से
ये मोहब्ब्त इक अदावत थी  तेरे  बीमार से
अब भी तू मिलता है मुझको जिंदगी में या नहीं
तेज   जाता  हूं मैं अपनी उम्र की रफ्तार से
कुछ बुरा ऐसा नहीं वाइज के मुंह से जिके्र-मय
जहर मिल जाता है लेकिन तल्खी-ए-गुफ्तार से।         
                                                              नौबतराय

अहले-महशर   देख लूं ,कातिल    को   पहचान लूं 
भोली-भाली शक्ल थी और कुछ भला-सा नाम था
मोहतसिब तसबीह   के   दानों   पे ये   गिनता रहा
किन ने पी, किन ने न पी, किन-2 के आगे जाम था।  
                                                 नबाब सिराजुद्दीन अहमद खां

हिज्र की शब नाला-ए-दिल वो सदा देने  लगे
सुनने  वाले   रात   कटने की दवा   देने  लगे
किस नजर से आपने देखा दिले-मजरुह  को 
जख्म को कुछ भर चले थे, फिर हवा देने लगे
जुज जमीने-कुऐ-जानां कुछ नहीं पेशे-निगाह
जिस का दरवाजा नजर आया सदा देने लगे
बागबां ने आग दी  जब   आशियाने को  मेरे
जिन पे तकिया था वही पत्ते हवा देने लगे।          
                                                मिर्जा जाकिर हुसैन

मुटिठयों मे खाक लेकर दोस्त आये वक्ते-दफन
जिंदगी भर की  मोहब्बत का    सिला देने   लगे
आईना   हो   जाये    मेरा   इश्क उनके हुस्न का
क्या  मजा हो   दर्द अगर खुद ही दवा देने लगे।

कभी दामाने-दिल पर दागे-मायूसी नहीं आया
इधर वादा किया उसने, उधर दिल को यकीं आया
दो आलम से गुजर कर भी दिले-आशिक है आवारा
अभी तक ये मुसाफिर अपनी मंजिल पर नहीं आया।   
                                                                सईद अनवर

दिल की बिसात क्या थी, निगाहे-जमाल में
इक    आईना   था    टूट गया   देखभाल  में
उमे्र-दो-रोजा    वाकई    ख्बाबों-ख्याल  थी
कुछ ख्बाब में   गुजर गई   बाकी ख्याल में।  
                                                         शेख आशिक हुसैन

मुझे दिल की खता पर ‘यास’ शर्माना नहीं आता  
पराया जुर्म अपने नाम लिखवाना नहीं आता
सरापा-राज हूं, मै क्या बताउं, कौन हूं क्या हूं?
समझता हूं मगर दुनिया को समझाना नहीं आता। 
                                                           मिर्जा वाजिद हुसैन

दिल का रोना खेल नहीं है, मुंह   को कलेजा  आने दो
थमते-थमते ही अश्क थमेंगे, नासेह को समझाने दो
कहते ही कहते हाल कहेंगे, ऐसी तुम्हें   जल्दी क्या है
दिल तो ठिकाने होने दो, और आप में हमको आने दो। 
                                                            मिर्जा जाफर अली खां

नजर उस हुस्न पर ठहरे तो आखिर किस तरह ठहरे
कभी जो फूल बन जाए,   कभी रुखसार    हो    जाये
चला  जाता हूं   हंसता    खेलता    मौजे-हवादिस से
अगर आसानियां   हो तो   जिंदगी दुश्वार  हो जाये ।  
                                                                 असगर हुसैन

                                                                     प्रस्तुतकर्ता: अभिजीत 










Saturday, June 16, 2012

मेरी एक ग़ज़ल



                                                     कुछ असर तो था मेरी दुआ और आहों में,
                                                     कि हमें मिल गई पनाह   उनके  बांहों में।

है अगर यह कुफ्र तो मुझको खुदा तुम माफ करो,
बुतपरस्ती   को   नहीं    गिनतें हैं हम गुनाहों में।

                                                                    मोहब्बत करना भी    किसी इबादत से नहीं होता,
                                                                    पलकें बिछाये रहतें हैं आशिक किसी की राहों में।

जमाने की बद निगाहें तेरे हुस्न को रुसवा न करे
आओ   छिपा लूं    मैं   तुम्हें   अपने   निगाहों में।

                                                                    हम    तो    समझे थे    तेरे आशिकों में   इक  हमीं थे,
                                                                    मगर सूफियों को भी मसरुर देखे हमने खानकाहों में।

                                                                                          अभिजीत 




Wednesday, February 1, 2012

तस्वीरें बहुत कुछ कहतीं हैं !















चलते-चलते

इस आखिरी तस्वीर का सबक-
मेरे ब्लॉग पे टहला कीजिये , आम के आम और गुठली के दाम !

Tuesday, January 31, 2012

फिराक़ साहब की ये बेहतरीन ग़ज़ल

जिसे लोग कहते  हैं तीरगी , वही  शब हिजाबे-सहर  भी  है,
जिन्हें बेखुदी-ए-फ़ना मिली, उन्हें जिन्दगी की खबर भी है !!1 !!

तेरे  अहले-दीद  को  देख  के   कभी खुल सका है ये राज़ भी 
उन्हें जिसने अहले-नज़र किया वो तेरा खराबे-नज़र भी है !!2 !!

ये  विसालो-हिज्र की बहस क्या कि अजीब चीज़ है इश्क भी,
तुझे पा के है वही दर्द-ए-दिल, वही रंगे-ज़ख्मे-जिगर भी है !!3 !!

ये नसीबे-इश्क की गर्दिशे ! की जमां-मकां से गुजर के भी,
वही आसमां, वही शामे-गम , वही शामे-गम की सहर भी है !!4 !!

तेरे  कैफे-हुस्न  की    जान    है  मेरी   बेदिली-ओ-फ़सुर्दगी
जिसे   कहते हैं   गमे-रायगाँ वो लिए हुए  कुछ असर भी है !!5 !!

न   रहा    हयात   की मंजिलों में वो फर्क नाजो-नियाज़ भी,
कि जहाँ है इश्क बरहना-पा,  वहीँ  हुस्न खाक-ब-सर भी है !!6 !!

वो गमे-फिराक भी कट गया, वो मलाले-इश्क भी मिट गया,
मगर आज भी   तेरे हाथ में  वहीँ   आस्तीं है कि तर   भी है !!7 !!

जो विसाले-हिज्र से दूर है, वो   करम   सितम   से है बेखबर,
कुछ उठा हुआ है वो दर्द भी, कुछ उठी हुई वो नज़र भी है !!8 !!

ये पता है    उसकी  इनायतों ने ख़राब कितनों को कर दिया,
ये खबर है नर्गिशे-नीमवा की गिरह में फितना-ओ-सर भी है !!9 !!

उसी   शामे-मर्ग    की तीरगीं  में हैं जलवा-हा-ए-हयात भी,
उन्ही जुल्मतों के हिजाब में ये चमक, ये रक्से-शरर भी है !!10 !!

वही   दर्द   भी है, दवा भी है, वही मौत    भी है,   हयात भी,
वही   इश्क नाविके-नाज़ है, वही इश्क सीना-सिपर भी है !!11 !!

तू जमां-मकां से गुजर  भी जा, तू रहे-अदम को भी काट ले,
वो सबाब हो की अजाब हो, कहीं जिन्दगी से मफर भी है !!12 !!

जो गले तक आके अटक गया, जिसे तल्ख़-काम न पी सके,
वो लहू का घूँट उतर गया तो सुना है शीको-शकर भी है !!13 !!

बड़ी   चीज़   दौलतो-जाह है,   बड़ी   बुसअतें हैं   नसीब उसे,
मगर अहले-दौलतों-जाह में, कहीं आदमी का गुजर भी है !!14 !!


ये  शबे-दराज   भी कट गई,   वो सितारें   डूबे, वो  पौ   फटी,
सरे-राह गफ्लते-ख़ाब से अब उठो की वक़्त-ए-सहर भी है !!15 !!


जो  उलट चुके  हैं  बिसाते-दहर   को   अगले वक्तों  में बढ़ा,
वही    आज  गर्दिशे-बख्त है, वही   रंगे-दौरे-कमर  भी   है !!16!!

न  गमे-अज़ाबो-सबाब   से  कभी  छेड़   फितरते-इश्क  को,
जो अजल से मस्ते-निगाह है उसे नेको-बद की खबर भी है !!17 !!

वो  तमाम  शुक्रो-रजा सही, वो तमाम सब्रों-सुकूं सही,
तू है जिस से माएल-ए-इम्तहां वो फ़रिश्ता है तो बशर भी है !!18 !!

कोई अहले-दिल की कमी नहीं मगर अहले-दिल का ये कौल है,
अभी मौत भी नहीं मिल सकी, अभी जिन्दगी में कसर भी है !!19 !!

तेरे     गम   की उम्रे-दराज     में कई    इन्कलाब   हुए मगर,
वही      तुले-शामे-फ़िराक  है, वही     इन्तजारे-सहर   भी है !!20 !!

चलते-चलते 

 
                                                                 प्रस्तुतकर्ता- अभिजीत 

                                                                                                                                    


Tuesday, January 24, 2012

मजेदार तस्वीरें

आजकल ब्लॉग पर कुछ लिखने के लिए वक़्त नहीं मिल रहा है और न  ही मन ऐसा बन रहा है की कुछ लिखा जाये ! ब्लॉग पे कुछ न कुछ तो करते रहना पड़ेगा वरना लोग भूल जायेंगे की कोई अभिजीत भी था ! इस बार और कुछ नहीं बस ये तस्वीरें जो किसी site से या facebook  से ली गयी है ! आप भी इनके मज़े लीजिये :-


बैंकर दोस्त थोडा change  कर लें ! अपने बारे में सोचिये और इसे BOD  और EOD  में बदल  कर देखिये !!
बैंकर मित्र इसे Scale  0 , Scale 1 , Scale 2  और Scale 3 से change  कर देखें !!, 
"जुगाड़ technology "
इनसे आपलोग chat  कर सकतें हैं !!
"Guess कीजिये कहीं ये अफगानिस्तान को तो नही खा रहे हैं ??"


                                                      "तकदीर बदलते देर नहीं लगती"

"लड़कियां गुंजाइश तो बहोत देतीं हैं "

"छोटा जोंटी "
"आह"
"मार डाला रे पढाई ने"

"नो कमेंट्स " आप खुद समझदार हो 

"रेलगाड़ी"


"जहाँ तेरी ये नज़र है, मेरी जां..."



चलते- चलते (ये facebook  से  किसी दोस्त संभवतः वैभव निगम नाम है ये उनके waal से लिया है )                                                       

क्या आपको.. पता है कि.. यह क्या लिखा है, यह लिखा है : 
.
"शहीद-ए -आजम.. सरदार भगत सिंह".. के 101-वें जन्मदिन.. के अवसर पर.. यहाँ जूते मुफ्त में पॉलिश 


किये जाएंगे..!!


एक भूखा गरीब आदमी देश के शहीदों के लिए अपनी आमदनी छोड़ सकता है पर..देखो.. भारत के.. बेशर्म 


नेताओं को .. किसी ने भी.. भगत सिंह जयंती पर.. एक शब्द भी नहीं बोला..!!!

(सभी तस्वीरे net  से ली गयीं हैं साभार )

अभिजीत 



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