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Tuesday, January 31, 2012

फिराक़ साहब की ये बेहतरीन ग़ज़ल

जिसे लोग कहते  हैं तीरगी , वही  शब हिजाबे-सहर  भी  है,
जिन्हें बेखुदी-ए-फ़ना मिली, उन्हें जिन्दगी की खबर भी है !!1 !!

तेरे  अहले-दीद  को  देख  के   कभी खुल सका है ये राज़ भी 
उन्हें जिसने अहले-नज़र किया वो तेरा खराबे-नज़र भी है !!2 !!

ये  विसालो-हिज्र की बहस क्या कि अजीब चीज़ है इश्क भी,
तुझे पा के है वही दर्द-ए-दिल, वही रंगे-ज़ख्मे-जिगर भी है !!3 !!

ये नसीबे-इश्क की गर्दिशे ! की जमां-मकां से गुजर के भी,
वही आसमां, वही शामे-गम , वही शामे-गम की सहर भी है !!4 !!

तेरे  कैफे-हुस्न  की    जान    है  मेरी   बेदिली-ओ-फ़सुर्दगी
जिसे   कहते हैं   गमे-रायगाँ वो लिए हुए  कुछ असर भी है !!5 !!

न   रहा    हयात   की मंजिलों में वो फर्क नाजो-नियाज़ भी,
कि जहाँ है इश्क बरहना-पा,  वहीँ  हुस्न खाक-ब-सर भी है !!6 !!

वो गमे-फिराक भी कट गया, वो मलाले-इश्क भी मिट गया,
मगर आज भी   तेरे हाथ में  वहीँ   आस्तीं है कि तर   भी है !!7 !!

जो विसाले-हिज्र से दूर है, वो   करम   सितम   से है बेखबर,
कुछ उठा हुआ है वो दर्द भी, कुछ उठी हुई वो नज़र भी है !!8 !!

ये पता है    उसकी  इनायतों ने ख़राब कितनों को कर दिया,
ये खबर है नर्गिशे-नीमवा की गिरह में फितना-ओ-सर भी है !!9 !!

उसी   शामे-मर्ग    की तीरगीं  में हैं जलवा-हा-ए-हयात भी,
उन्ही जुल्मतों के हिजाब में ये चमक, ये रक्से-शरर भी है !!10 !!

वही   दर्द   भी है, दवा भी है, वही मौत    भी है,   हयात भी,
वही   इश्क नाविके-नाज़ है, वही इश्क सीना-सिपर भी है !!11 !!

तू जमां-मकां से गुजर  भी जा, तू रहे-अदम को भी काट ले,
वो सबाब हो की अजाब हो, कहीं जिन्दगी से मफर भी है !!12 !!

जो गले तक आके अटक गया, जिसे तल्ख़-काम न पी सके,
वो लहू का घूँट उतर गया तो सुना है शीको-शकर भी है !!13 !!

बड़ी   चीज़   दौलतो-जाह है,   बड़ी   बुसअतें हैं   नसीब उसे,
मगर अहले-दौलतों-जाह में, कहीं आदमी का गुजर भी है !!14 !!


ये  शबे-दराज   भी कट गई,   वो सितारें   डूबे, वो  पौ   फटी,
सरे-राह गफ्लते-ख़ाब से अब उठो की वक़्त-ए-सहर भी है !!15 !!


जो  उलट चुके  हैं  बिसाते-दहर   को   अगले वक्तों  में बढ़ा,
वही    आज  गर्दिशे-बख्त है, वही   रंगे-दौरे-कमर  भी   है !!16!!

न  गमे-अज़ाबो-सबाब   से  कभी  छेड़   फितरते-इश्क  को,
जो अजल से मस्ते-निगाह है उसे नेको-बद की खबर भी है !!17 !!

वो  तमाम  शुक्रो-रजा सही, वो तमाम सब्रों-सुकूं सही,
तू है जिस से माएल-ए-इम्तहां वो फ़रिश्ता है तो बशर भी है !!18 !!

कोई अहले-दिल की कमी नहीं मगर अहले-दिल का ये कौल है,
अभी मौत भी नहीं मिल सकी, अभी जिन्दगी में कसर भी है !!19 !!

तेरे     गम   की उम्रे-दराज     में कई    इन्कलाब   हुए मगर,
वही      तुले-शामे-फ़िराक  है, वही     इन्तजारे-सहर   भी है !!20 !!

चलते-चलते 

 
                                                                 प्रस्तुतकर्ता- अभिजीत 

                                                                                                                                    


2 comments:

  1. इस ख़ूबसूरत प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकारें.

    मेरे ब्लॉग"meri kavitayen" पर भी पधारने का कष्ट करें, आभारी होऊंगा.

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  2. फ़िराक साहब से रु-ब-रु कराने के लिए शुक्रिया भाई अभिजित जी ।

    ReplyDelete

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