आपके शरीर की भाषा आपके मनः स्थिति , आपका रवैया सभी का परिचायक होता है ! शरीर की भाषा में शरीर की मुद्राए, इशारे, आँखों के पुतलियों की गति सभी आती है ! शरीर की भाषा अथवा Body -Language पर शोध करने वाले पश्चिम के महान विज्ञानी अल्बर्ट मेह्राबियन ने कहा था की मनुष्य जो भी कहता है, इंगित करता है उसमे उसके शब्दों का महत्व सिर्फ ३० से ३५ फीसदी होता है , बाकी बातें उसकी अभिव्यक्तिया बता देती है !
आजकल यह शब्द काफी चर्चा में है ! मैनेजमेंट के क्षेत्र में तो यह अनिवार्य है कि आपके द्वारा दिए गए Presentation में इस कला का बखूबी इस्तेमाल हो ! Interview के दौरान बोर्ड के मेम्बर इसी तकनीक का सहारा लेकर प्रतियोगी की मनः स्थिति को भांप लेते है !
सामान्य शब्दों में कहे तो शारीरिक भाषा आपकी सामान्य परिचायक है जो अनुभवी व्यक्ति को आपके बारे में काफी कुछ आपके बिना कहे ही बता देता है ! इस विज्ञान की ये खासियत है कि यह पूरी दुनिया में एक समान है ,भले ही उनमें भाषा भेद जो भी हो !
चाहे हो भाषण कला हो अथवा Presentation Body -Language का अपना महत्व है, आपकी बात समझाने का यह बहुत सशक्त माध्यम है ! कई बार इसका इस्तेमाल आप अनुकूल परिस्तिथियो को अपने पक्ष में करने में भी कर सकते हैं!
आज यह विषय इतना महत्वपूर्ण हो गया है की दुनिया के कई विश्वविद्यालों में बाकायदा इसकी पढाई करवाई जाती है !
मगर सबसे दुःख की बात है की इस विज्ञान का जनक औरों को तो छोड़िये स्वयं हम भारतवासी भी पश्चिमी दुनिया को दे देते हैं, जबकी सच्चाई इसके ठीक उलट है ! अगर आप वाल्मीकि रामायण पढेंगे तो
उसके एक श्लोक में कहा गया है -
"व्यक्तियों के मनोभावों का ज्ञान आकर ,गति,चेष्टा ,वाणी, नेत्र, मुख विकार के द्वारा होता है , हाव-भाव मनुष्य के अंतरतम का परिचायक होता है ! "
वाल्मीकि रामायण का एक प्रसंग है, वनवास के दौरान जब प्रभु राम ,लक्ष्मण और माता सीता घूमते-२ वानरराज सुग्रीव के क्षेत्र में प्रवेश कर जाते हैं तो बाली के भाई से भयभीत सुग्रीव पवनपुत्र हनुमान को भेष बदल कर पता लगाने के लिए भेजते है की ये लोग कौन है ! इसी दौरान राम के साथ हनुमान का परिचय होता है, लक्ष्मण को हनुमान का परिचय देते हुए प्रभु राम कहते है -"हे लक्ष्मण! ये महामनस्वी वानरराज सुग्रीव के सचिवोत्तम हनुमान है, ये उन्ही कि हित की कामना लिए मेरे पास आये है ! भाई जिसे ऋग्वेद की शिक्षा नहीं मिली , जिसने यजुर्वेद का अभ्यास नहीं किया और जो सामवेद का विद्वान नहीं है वो ऐसी सुन्दर भाषा में वार्तालाप कर ही नहीं सकता ! निश्चय ही इन्होने शास्त्रों का कई बार स्वाध्याय किया है , क्योंकि बहुत सी बातें बोल जाने पर भी इनके मुख से कोई अशुद्धि नहीं निकली! संभाषण में इनके मुख,नेत्र ,ललाट ,भौं तथा किसी भी अंग से कोई दोष प्रकट नहीं हुआ! इन्होने बड़ी स्पष्ट तरीके से अपना अभिप्राय व्यक्त किया है !" (वाल्मीकि रामायण, ४/३/२६/३१)
वाल्मीकि रामायण में सिर्फ यही नहीं इस तरह के कई ऐसे महत्वपूर्ण शिक्षाएं है जिन्हें हम अज्ञानतावश पश्चिम की दें समझ लेते है ! यह अज्ञानता दूर हो अपने महान ग्रंथो और पूर्वजो के प्रति सम्मान भाव जागृत हो, यही इस आलेख का हेतू है !