"तेरे जाने के बाद "
वो भूल गए हैं हमको , हमें भी वो याद नहीं आते
अच्छा है इन आँखों में अब कोई ख़ाब नहीं आते !
तेरे जाने से सब ठीक ही है पर इतना ही हुआ है बस्ती में
चिड़ियों ने चहकना छोड़ दिया , कलियों पे शबाब नहीं आते !
वो वक़्त की तेरी चाहत में, चाहा ही नहीं , पूजा भी तुझे
ये वक़्त की तुझसे बिछड़ कर भी आँखों में आब नहीं आते !
महबूब-परस्तिश हमने की , ये सच है तो फिर क्यों ये खुदा
शिर्क-ए-इलाही से हम पे अजाब नहीं आते !
वो वक़्त के तुझे कोई देखे तो, हर हद से गुजर जाता था मैं,
ये वक़्त की तू किसी और की है, इस पर भी इताब नहीं आते !
तब मेरा ख्याल आने भर से , आँखें न तेरी उठ पाती थी
अब मुझे नज़र मिलने पर भी चेहरे पे नकाब नहीं आते !
कई जुर्म किये इस दुनिया में, सो बरज़ख में भी सुकून नहीं,
गर अजाब-ए-फ़रिश्ते होते हैं, तो क्यों लेने हिसाब नहीं आते !
इजहार-ए-मोहब्बत पर उसने, क्या तुझसे कहा था याद है कुछ
ख़ाहिश में "अभिजीत" गरीबों के माहताब नहीं आते !
अभिजीत
अर्थ-
ख़ाब- सपना, शबाब- जवानी, आब- आंसू , महबूब परश्तिश- प्रेमिका की इबादत , शिर्क-इ-इलाही- ईश्वर की साथ इबादत में किसी और को शरीक करना , अजाब-दंड ,इताब- गुस्सा, क्रोध , नकाब- पर्दा, बरज़ख- मौत और क़यामत की बिच की मुद्दत, ईश्वर का गुस्सा (कुरान में प्रयुक्त वो शब्द जो प्रायः उनलोगों से सम्बद्ध है जो ईश्वर के साथ उसकी इबादत में किसी कौर को भी शरीक करते हैं ), इजहार-इ-मोहब्बत- प्रेम-प्रदर्शन , माहताब-चाँद !!
"मेरे वर्तमान मानस का परिचायक, बेचैन दिल की आवाज़, किसी को खोने का दर्द , किसी से उपेक्षित होने का दुःख, अपनी गलतियों पे अफ़सोस ! इन तमाम बातों को बयां करती ये ग़ज़ल जो मेरे दिल की आवाज़ है, उस वक़्त की सदा है जब दिमाग साथ नहीं होता "
"special thnx to my friend mohd. abid for his suggestions "
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ReplyDeleteabhijit bhai ye gajal kafi achi hai sabdo ko behatarin upyog but zindki me abhi aisi koi najakat nai so in sabdo ki gaharaiyo me nai uttar pa raha ho!
ReplyDeletehe he he he
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