सर अपना काट के फेंक आया कूयें-कातिल में
ये बोझ था मेरी गर्दन पे सो उतार आया
जवान मारिका-ए-हुस्नों इश्क था आजाद
चला जो दिल पे न काबू तो जान हार आया।
मौलाना मुहम्मद हुसैन
अदा में, सादगी में कंघी चोटी ने खलल डाला
शिकन माथे पे, अबरु में गिरह, गेसू में बल डाला
खिले दो फूल नीलोफर के आंखें उसने जब खोलीं
सितम कैसा किया, शर्माय हाथों से जो मल डाला।
सैयद अली हैदर
वो आलम है कि मुंह फेरे हुये आलम निकलता है
शबे-फुर्कत में गम झेले हुओं का दम निकलता है
इलाही खैर हो उलझन पे उलझन बढ़ती जाती है
न मेरा दम, न उनके गेसुओं का खम निकलता है
कयामत ही न हो जाये जाए पर्दे से निकल आओ
तुम्हारे मुंह छुपाने में तो ये आलम निकलता है।
सैयद अली नकी
हमदमों ने जान ले ली पुसिर्ये-आजार से
ये मोहब्ब्त इक अदावत थी तेरे बीमार से
अब भी तू मिलता है मुझको जिंदगी में या नहीं
तेज जाता हूं मैं अपनी उम्र की रफ्तार से
कुछ बुरा ऐसा नहीं वाइज के मुंह से जिके्र-मय
जहर मिल जाता है लेकिन तल्खी-ए-गुफ्तार से।
नौबतराय
अहले-महशर देख लूं ,कातिल को पहचान लूं
भोली-भाली शक्ल थी और कुछ भला-सा नाम था
मोहतसिब तसबीह के दानों पे ये गिनता रहा
किन ने पी, किन ने न पी, किन-2 के आगे जाम था।
नबाब सिराजुद्दीन अहमद खां
हिज्र की शब नाला-ए-दिल वो सदा देने लगे
सुनने वाले रात कटने की दवा देने लगे
किस नजर से आपने देखा दिले-मजरुह को
जख्म को कुछ भर चले थे, फिर हवा देने लगे
जुज जमीने-कुऐ-जानां कुछ नहीं पेशे-निगाह
जिस का दरवाजा नजर आया सदा देने लगे
बागबां ने आग दी जब आशियाने को मेरे
जिन पे तकिया था वही पत्ते हवा देने लगे।
मिर्जा जाकिर हुसैन
मुटिठयों मे खाक लेकर दोस्त आये वक्ते-दफन
जिंदगी भर की मोहब्बत का सिला देने लगे
आईना हो जाये मेरा इश्क उनके हुस्न का
क्या मजा हो दर्द अगर खुद ही दवा देने लगे।
कभी दामाने-दिल पर दागे-मायूसी नहीं आया
इधर वादा किया उसने, उधर दिल को यकीं आया
दो आलम से गुजर कर भी दिले-आशिक है आवारा
अभी तक ये मुसाफिर अपनी मंजिल पर नहीं आया।
सईद अनवर
दिल की बिसात क्या थी, निगाहे-जमाल में
इक आईना था टूट गया देखभाल में
उमे्र-दो-रोजा वाकई ख्बाबों-ख्याल थी
कुछ ख्बाब में गुजर गई बाकी ख्याल में।
शेख आशिक हुसैन
मुझे दिल की खता पर ‘यास’ शर्माना नहीं आता
पराया जुर्म अपने नाम लिखवाना नहीं आता
सरापा-राज हूं, मै क्या बताउं, कौन हूं क्या हूं?
समझता हूं मगर दुनिया को समझाना नहीं आता।
मिर्जा वाजिद हुसैन
दिल का रोना खेल नहीं है, मुंह को कलेजा आने दो
थमते-थमते ही अश्क थमेंगे, नासेह को समझाने दो
कहते ही कहते हाल कहेंगे, ऐसी तुम्हें जल्दी क्या है
दिल तो ठिकाने होने दो, और आप में हमको आने दो।
मिर्जा जाफर अली खां
नजर उस हुस्न पर ठहरे तो आखिर किस तरह ठहरे
कभी जो फूल बन जाए, कभी रुखसार हो जाये
चला जाता हूं हंसता खेलता मौजे-हवादिस से
अगर आसानियां हो तो जिंदगी दुश्वार हो जाये ।
असगर हुसैन
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